BULBULA ( IN HINDI)
बुलबुला
न जाने कहाँ से आया
जाने कहाँ ले जाये कुछ पता नहीं
ये अल्हड़ सी ज़िन्दगी
पानी का बुलबुला
गुड्डे गुड़िया के संसार और माँ बाप के प्यार में
खेलता रहा दौड़ता रहा जहाँ जी चाहा
न जाने बचपन कैसे हवा में उड़ गया
पता ही नहीं चला
जवानी की धूप
अपने अंदर समंदर समेटे
अपने अंदर समंदर समेटे
कभी टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियों में
और कभी ऊंची नीची वादियों और घाटियों में
बुलबुला भँवरे की तरह सपनों के पंख लगा
और कभी ऊंची नीची वादियों और घाटियों में
बुलबुला भँवरे की तरह सपनों के पंख लगा
ज़िंदगी के फूलों
और काँटों से गुज़रता रहा
और काँटों से गुज़रता रहा
दिल की उमंगों, इरादों की हिम्मत
और हौसलों का आँचल पकड़े
कभी ऊपर तो कभी नीचे ये बुलबुला
समय की लहरों पर डोलता रहा झूलता रहा
और अचानक फिर एक दिन
अपनी उमंगों के
इँद्रधनुष के सभी सतरँगी रंग लिये
अपने ही समंदर में खो जाता है
अपने ही समंदर में खो जाता है
ये अल्हड़ सा बुलबुला
नन्हाँ सा, प्यारा सा
नन्हाँ सा, प्यारा सा
मन का चुलबुला बुलबुला
जाने कहाँ कहाँ ले जाए कुछ पता नहीं
इस प्यारी ज़िंदगी को
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