जिंदगी
जिंदगी कितनी चंचल है ये जिंदगी कभी खिलखिलाती है , कभी अठखेलियां करती है नन्हें होठों की पंखुरियों पर लेकिन अगले ही क्षण वही जिंदगी इक आंसू बन बहती है। क्यों दुनिया में चारों तरफ इतनी हलचल और परेशानी है क्यों मतलब की ख़ुशी और मतलब का प्यार क्या यही बचा है इस संसार में लगता है जैसे हम सब इक गोल सीढ़ी पर खड़े हैं हमेशा नज़र ऊपर ही देखती है कहीं कोई हमसे आगे न निकल जाए क्यों नज़र नीचे नहीं झांकती ? क्यों होठों पर बिन मतलब मुस्कान नहीं आती ? क्यों हम इक दूसरे को पछाड़ने की होड़ में लगे रहते हैं जो सच्चा है वही अच्छा है और वही पीछे छूटता जा रहा है प्यार से जिंदगी का हाथ पकड़ चलो इक बच्चे की तरह यह रोकती नहीं , यह टोकती नहीं बस चलती है जैसे आप चाहो क्योंकि जिंदगी निश्छल है जिंदगी चंचल है ...