MAEN OR MERI KHUSHIYAN (HINDI )
मैं और मेरी खुशियाँ बक्से में संभाल कर रखे थे मैनें अपनी छोटी छोटी खुशियों के पल सोचा था आराम से बैठ कर इन्हें जीऊँगी भागती रही जीवन भर कभी अपनों के लिये तो कभी अपने लिये पता ही नहीं चला, समय कैसे बीत गया आज शीशे में देखा खुद को पहचान ही नहीं पाई कहाँ खो गयी वो पहली सी मैं जब बक्सा खोला तो हैरानी हुई वहां कुछ भी नहीं था मेरा प्यार, दुलारऔर हँसी कहाँ गयी जिनमें मेरी ज़िन्दगी छिपी थी आज मेरे हाथ खाली थे और मन में अफ़सोस पर क्या करती मैं, अपने लिये कभी समय ही नहीं मिला सोचती हूँ आज जीवन में एकदम तो कुछ भी नहीं होता इन्हीं क्षणों में हमारा अतीत, हमारा वर्तमान और भविष्य भी छिपा है हर सांस में इक उम्मीद है जीवन के हर क्षण में कुछ करनें का मौका है हर पल में कुछ करने का इक साहस छिपा है नदी का बहता पानी आपके हाथ को छू कर हमेशा के लिये आगे बढ़ जाता है बस वही क्षण इक आरम्भ है ...