ZINDGI PHIR MUSKURAEGI ( HINDI )
ज़िंदगी फिर मुस्कुराएगी
फिर बहारें आएँगी
फिर ख़ुशियों के फूल खिलेंगे
यारों दोस्तों की महफ़िलें सजेंगी
सखियों सहेलियों की मुलाकातें और दावतें फिर से होंगी
और ज़िंदगी फिर से मुस्कुराएगी
आज दूरी हमारी मज़बूरी है
वरना अपने तो हमेशा दिल में रहते हैं
जल्द ही ज़िंदगी बाँहों में होगी
हम सूरज और चाँद की रौशनी से नज़रें मिलाएंगे
हम बारिश भी चखेंगे
और नन्हीं बूंदों से अपने आप को भिगोएंगे
बस थोड़ा ठहरो
कब तक मुँह छिपाएगा ये चाँद
ज़रा इन काले बादलों को छंट जाने दो
खुशियों के कहकहों से ही, ज़िंदगी की नींद टूटेगी
सुबह होने से पहले रात हमेशा गहरी होती है
कठिन समय है आज
सारे संसार की परीक्षा हो रही है
इस अनजानी तपश से हम खरे हो कर निकलेंगे
हिम्मत है होंसला है
अपने संस्कारों का और अपनी समझदारी का
ज़िंदगी डगमगाई है आज
पटरी बदली है, पर रुकी तो नहीं
बस थोड़ा ठहर जाओ
जल्द ही बच्चों की किलकारियाँ
चारों तरफ़ खुले आसमान के नीचे गूँजेंगी
खेल के मैदान, खेत खलिहान
और घरों के आँगन ख़ुशी के गीतों से चहक उठेंगे
हम फिर मिलेंगे बाहें फैला कर
गले मिलेंगे बिछड़े हुऐ
ज़िंदगी फिर से झूमेगी, नाचेगी और गाएगी
ज़िंदगी की मुस्कुराहट और हँसी की खनक फिर से सुनाई देगी
हाँ, ज़िंदगी जल्द ही मुस्कुराएगी
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काश मेरे पास भी अरूणा जी की तरह अपने भावों को कविता में बांधने की लेखन शक्ति होती तो मैं अरूणा जी की इस सुंदर, अद्वितीय कविता की प्रशंसा काव्यात्मक शैली में करता..... बहरहाल मैं इतना ही कह सकता हूं कि "कोरोनाविषाणु' से उत्पन्न वर्तमान परिस्थिति के संदर्भ में लिखी गई यह कविता बहुत ही सम्यक् और प्रेरणात्मक है....👍
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