DRPAN (HINDI)

दर्पण  


कितना जानते  हो अपने आपको
क्या दिल के आइने में कभी खुद को देखा है   
योग और एकांत में क्या अपना सच दिखाई देता है 

कितना पहचानते हो स्वयं को 
अगर सभी लोग दर्पण पहन लें 
 वो खुद को ही देखेंगे,  दूसरों को नहीं  
कोई भी अहम या अहंकार इतना बड़ा न हो जाए 
कि वहम ही बन जाए 

इच्छाऐं , अपेक्षाऐं  रिश्तों और भावनाओं को जन्म देती हैं 
अहंकार और ईर्षा 
केवल उदासी और अकेलापन पैदा करते  है

मानव शरीर का कोई भी अंग 
स्वतंत्र काम नहीं करता 
जीवन के सभी पहलू पारिवारिक,  सामाजिक
और  राष्ट्रीय 
हमेशा एक दूसरे से ही जुड़े रहते  हैं 

कभी खुद से मिलना हो 
तो अपने रिश्तों के बारे में सोचें 
सभी रिश्तों में केवल अपनी ही झलक मिलती है 

हर रिश्ता कुछ कहता है  
इन्हीं रिश्तों के सहारे हर ज़िंदगी चलती है
  
स्नेह और सम्मान में छिपा है   
संसार के सुखी जीवन का आधार 
हर रिश्ता आपकी अपनी ही परछाईं हैं  
आपके रिश्ते ही आपका दर्पण हैं 

अगर अपने आप से मिलना हो 
तो स्वयं को पहचानो 
ये रिश्ते आपका आईना हैं 
रिश्तों में ही छिपी है 
मन की ख़ुशी 
   


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Comments

  1. अति सुन्दर प्रस्तुति

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